Kavita Jha

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यात्रा वृत्तांत #लेखनी दैनिक लेख प्रतियोगिता -24-Sep-2022

यात्रा वृत्तांत
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यह सत्य है जीवन सफर नियमित चलता रहता है। इस दौरान की गई कुछ यात्राएं मानसपटल पर हमेशा अपनी खास यादें छोड़ जाती हैं। ऐसे ही अब तक यानि इन 44 वर्षों के अपने जीवन काल में मुझे भी कई यात्राओं का मौका मिला। इनमें से कुछ की यादें तो आज भी बिल्कुल तरोताजा हैं।
एक यात्रावृत्तांत जो दिल्ली से आगरा, मथुरा, मेरठ का है  , आज से 27 साल पहले का अभी भी लग रहा है जैसे कल की ही बात हो। मैं उस समय बीकॉम फर्स्ट इयर में थी , शाम को एकाउंट्स की ट्युशन के बाद घर लौट रही थी कि रास्ते में मैंने अपनी मम्मी को आते हुए देखा। उनसे पूछने पर कि वो कहाँ जा रही हैं उन्होंने बताया कि भाई भाभी का अचानक मथुरा आगरा जाने का प्रोग्राम बना बस उन्हें ही देखने बस स्टॉप जा रही हूंँ।मैं भी मम्मी के साथ भाई भाभी के पास चली गई और वहांँ बस स्टॉप पर पहुंचते ही भाई ने मुझे भी अपने साथ चलने को कहा।
मैं अपनी यह यात्रा कभी नहीं भूल सकती। भाई ने अपने वर्कर से कहकर धोबी के पास से ही मेरे कपड़े मंगवा लिए और मैं उन्हीं घर के कपड़ों और हवाई चप्पल में ही दिल्ली के महावीर इंक्लेव से भाई के  वैन में बैठ गई उसमें आठ लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। थोड़ी देर बाद पालम गाँव से भाई के दोस्त अपने परिवार के साथ आ गए। फिर शुरू हुई हमारी रोमांचक यात्रा।
वैसे तो भाई और उनका दोस्त अपने बिजनेस के सिलसिले में ही मेरठ जाने वाले थे लेकिन परिवार वालों के जोर देने पर 
पहले आगरा में ताजमहल देखने का कार्यक्रम बना। हम अपनी गाड़ी से बहुत ही मस्ती करते हुए दिल्ली से यूपी की सड़कों में पहुंँच गए। रात को खिड़की से बाहर का दृश्य बहुत ही सुन्दर लग रहा था। आगरा पहुंचते हुए काफी रात हो गई थी ।करीब डेढ़ बज रहे थे इसलिए रात होटल में ही रुकना सही लगा।भूख से सबका  बुरा हाल था इतनी रात को भी हमें वहां बहुत अच्छा राजस्थानी खाना मिला। सुबह आठ बजे हम लोग तैयार होकर आगरा की गलियों में निकल पड़े। वहाँ का बाजार बहुत अच्छा लगा। फिर करीब दस बजे हम दुनिया के सातवें अजूबे ताजमहल को देख रहे थे। बाहर से जितना सुन्दर नजारा लग रहा था अंदर जाकर सच कहूं तो मुझे तकलीफ़ हुई जब मैंने विदेशी सैलानियों को टॉर्च की रोशनी से दीवार लगी मीनाकारी को खरोंचते हुए देखा। मैंने ध्यान दिया दीवारों पर लगे बेशकीमती रत्न जैसे वहांँ से खरोंच लिए गए हैं। हमारी एतिहासिक धरोहर हम संभाल कर नहीं रख पा रहे।
मन थोड़ा खिन्नता से भर गया।हम लोग काफी देर वहाँ घूमें फिर फोटो खिंचवाई वहीं के कैमरामैन से जिसने आधे घंटे के अंदर ही हमारी फोटो हमें दे दी।
अगले दिन हम कृष्ण भूमि मथुरा के मंदिरों में दर्शन कर रहे थे। वहाँ भी कुछ बातें मुझे अच्छी नहीं लगी। मंदिरों में होता व्यावसायिकरण खल रहा था। पंडे जब हर जगह पैसे मांग रहे थे फिर भी कृष्ण भूमि में हर जगह उन्हें महसूस कर रही थी।बात काफी पुरानी हो गई है इसलिए सब कुछ याद नहीं है फिर भी वो यात्रा भूलना मेरे लिए मुश्किल है। कुछ खट्टी और कुछ मीठी यादों को लेकर लौटते वक्त जिन मुसीबतों से गुजरे हम वो आज भी ज़हन में तरोताजा हैं।
हम लोगों को घुमाने फिराने के बाद भाई जिस काम के लिए आया था उसे पूरा किया। उसने अपने टैंट हाऊस के लिए तीन जरनेटर खरीदे और उसी गाड़ी में लोड किया।अब आगे की यात्रा यानी यूपी से दिल्ली वापसी वो भी तीनों जरनेटर छुपाकर ही बॉर्डर क्रॉस करना था। गाड़ी ओवर लोड होने के कारण कई बार खराब हुई। हमारे साथ मुझे छोड़कर चार छोटे बच्चे भी थे।सब परेशान हो रहे थे जाते समय जितना आनंद आ रहा था लौटते वक्त उतनी ही तकलीफों से गुजरना पड़ा। 
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कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी दैनिक कहानी/लेख प्रतियोगिता

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7 Comments

Seema Priyadarshini sahay

25-Sep-2022 03:50 PM

बहुत अच्छी यादें👌👌

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Chetna swrnkar

25-Sep-2022 09:50 AM

बेहतरीन रचना

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